पलायन से जूझता एक गांव
आज मैं आपको पलायन से जूझते उत्तराखंड के एक गांव से रूबरू करना चाहता हूं यह गांव जिला पौड़ी गढ़वाल की, लैंसडाउन तहसील के अंतर्गत आता है। लैंसडाउन ब्लॉक की सुरम्य वादियों में बसे इस गांव का नाम है बौंठा। प्रसिद्ध पर्यटक स्थल लैंसडाउन से बौंठा गांव 2 किलोमीटर दक्षिण में पड़ता है लैंसडाउन की तरह की इसकी प्राकृतिक छटा निराली है 6000 फुट की ऊंचाई पर होने के कारण यह चारों ओर से बांझ ,बुरास एवम चीड के घने जंगलों से घिरा हुआ है जिसके कारण यहां का मौसम हमेशा ठंडा रहता है गर्मियों के दिनों में भी यहां गर्मी का आभास तक नहीं होता। घने जंगलों से घिरे होने के कारण यहां हवा एवं वातावरण बहुत ही शांत व मनभावन है। जब हवा चलती है तो चीड़ की पत्तियों के हिलने से बहुत ही मधुर संगीत निकलता है जिस से मन को अलग ही खुशी का आभास होता है। लैंसडाउन के अलावा बौंठा, जेहरीखाल और डेरियाखाल से भी 2 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। अप्रैल माह में गांव पास ही कुणजीला का मेला लगता है जिसका गांव एवम आसपास के लोगों को बड़ा बेताबी से इंतजार रहता है।
गांव मे सिंचाई की सुविधा न होने के बावजूद भी यहां पर गेंहू,धान,भट्ट(सोयाबीन,)बंगलू( भांग के बीज), ककड़ी( पहाड़ी) आलू एवं प्याज खूब हो जाते हैं। गांव में पीने के पानी की सप्लाई स्थानीय सूत्रों से पाइप द्वारा की जाती है। पहले गांव में एक प्राइमरी स्कूल थी, पुराने लोग इसी स्कूल में पांचवी तक पढ़ते थे, उसके बाद छठी से आगे लैंसडाउन पैदल ही पढ़ने के लिए आया -जाया करते थे। गांव के 100% लोग साक्षर हैं यह उत्तराखंड के बेहतरीन साक्षरता को प्रदर्शित करता है।अच्छी पढ़ाई करने के बाद गांव के लोग सरकारी या प्राइवेट सेक्टर में अच्छे-अच्छे पदों पर देश के विभिन्न भागों में कार्यरत हैं, जिसके कारण गांव में रहने वाले लोगों की संख्या बहुत कम रह गई है।पलायन से गांव में बच्चों की संख्या कम होने के कारण पुराना प्राइमरी स्कूल अब बंद हो गया है। जहां उत्तराखंड बनने से पहले यहां पर कुल 45 परिवार रहा करते थे जिसमें 43 परिवार ब्राह्मण ( बौंठियाल) थे एवं दो परिवार क्षत्रिय थे। उत्तराखंड बनने के बाद अब गांव में कुल मिलाकर 5 परिवार ही रह गए हैं। प्रदूषण मुक्त एवं शांत वातावरण होने के बावजूद भी गांव से 95% से अधिक पलायन हो चुका है। पलायन का मुख्य कारण उत्तराखंड में रोजगार की कमी है दूसरा कारण 74 साल बाद भी गांव का मुख्य सड़कों से न जुड़ पाना।जो कि सरकारों एवम जनप्रतिनिधियों का गाँवों की प्रति उदासीनता को दिखाता है। अब जबकि लगभग सारा गांव खाली हो चुका है गांव को मुख्य सड़क से जोड़ दिया गया है। गांव का सड़क से जोड़ने के बाद, गांव मे रहने वाले एवम पलायन कर चुके लोगों में आशा एवं उत्साह की एक किरण जागृत हो रही है। गांव का सड़क से जुड़ जाने के बाद गांव के लोगों को पर्यटन का लाभ मिलेगा। गांव के लोग अपने उत्पादनों को बाजार तक ले जा पाएंगे, जिससे गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। गांव से देहरादून या अन्य स्थानों पर पलायन हो चुके परिवारों से जब गांव की सड़क से जुड़ जाने के बारे में बात की गई, तो लोग इससे बड़े खुश एवम उत्साहित दिखाई दिए।लोगों का मानना है कि वे भी अब गांव में वापस आकर अपना होटल , रिसॉर्ट्स ,स्टेट होम एवं अन्य सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं का लाभ उठाकर खुद एवं अन्य लोगों को रोजगार देने का प्रयास करेंगे, ताकि गांव एवं उत्तराखंड में विकास की लहर प्रारंभ हो सके। वे अपने गांव में रहकर इसकी स्वच्छ एवम शांत वातावरण का लाभ उठा सकेंगे। इसतरह जो लोग गांव छोड़कर जा चुके हैं वे अपने पुराने गांव की ओर आकर्षित होंगे, क्योंकि भले ही मजबूरी में लोग गांव छोड़कर जा चुके हैं परंतु उनके मन में आज भी गांव की यादें ताजी हैं और आज भी दिलो मे गांव के प्रति बेहद प्यार है।
बौंठ गांव एक उदाहरण है जो कि दिखाता है कि आजादी के बाद या उत्तराखंड बनने के बाद भी गांवों का समुचित विकास न होने के कारण गांवो से पलायन बढ़ता ही चला गया,जिससे अच्छे खासे खुशहाल गांव वीरान हो गये। मजबूरी मे गांव के लोगों को,वह सब छोड़कर जाना पड़ा ,जो उनके खून एवम दिलो-दिमाग मे बसता था। पुरानी पीढ़ी के प्राण,तो गांवों में ही बसते थे। नयी पीढ़ी जोकि लंबे अरसे से गांवों से दूर रह रही है वह क्या सोचती हैं, वह भविष्य मे क्या करती है यह तो समय ही बताएगा। परंतु इतना अवश्य है कि पलायन ने उत्तराखंड के रहन-सहन,खानपान पारंपरिक परंपराओं, त्योहारों, रीति-रिवाजों, धार्मिक एवं सामाजिक क्रियाकलाप,आदि कल्चरल क्रियाकलापों को अत्याधिक प्रभावित किया है।गांव से संबंधित जानकारी देने के लिए श्री यस सी बौंठियाल,ग्राम- बौंठा/देहरादून का बहुत-बहुत धन्यवाद।
जीयसबिष्ट,, देहरादून,बड़खोलू (20/03/22)
By Gopal Singh BIsht, Ex-PGT, Kendriya Vidyalaya
Native village: Batkholu, Pauri Garhwal